EN اردو
जब वो झगड़े मिटा चुके होंगे | शाही शायरी
jab wo jhagDe miTa chuke honge

ग़ज़ल

जब वो झगड़े मिटा चुके होंगे

क़लील झांसवी

;

जब वो झगड़े मिटा चुके होंगे
ख़ून कितना बहा चुके होंगे

चाँद का ज़ख़्म देखने वाले
शमएँ कितनी बुझा चुके होंगे

कल के सपनों को पालने वालो
कल तो सपने रुला चुके होंगे

उन के तुम दोस्त हो कि दुश्मन हो
वो जो मक़्तल में जा चुके होंगे

बस 'क़लील' उन की याद बाक़ी है
दुश्मनी जो निभा चुके होंगे