जब वो झगड़े मिटा चुके होंगे
ख़ून कितना बहा चुके होंगे
चाँद का ज़ख़्म देखने वाले
शमएँ कितनी बुझा चुके होंगे
कल के सपनों को पालने वालो
कल तो सपने रुला चुके होंगे
उन के तुम दोस्त हो कि दुश्मन हो
वो जो मक़्तल में जा चुके होंगे
बस 'क़लील' उन की याद बाक़ी है
दुश्मनी जो निभा चुके होंगे

ग़ज़ल
जब वो झगड़े मिटा चुके होंगे
क़लील झांसवी