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जब तो मैं हूँ आह में ऐसा असर पैदा करूँ | शाही शायरी
jab to main hun aah mein aisa asar paida karun

ग़ज़ल

जब तो मैं हूँ आह में ऐसा असर पैदा करूँ

निज़ाम रामपुरी

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जब तो मैं हूँ आह में ऐसा असर पैदा करूँ
ऐ सितमगर तेरे दिल में अपना घर पैदा करूँ

याँ तो ये आदत है किस किस का करेगा तू इलाज
रोज़ बीमारी से मैं दो चार अगर पैदा करूँ

ये तग़ाफ़ुल वस्ल की शब पूछते हैं मेरा हाल
अब दुआएँ माँग कर दर्द-ए-जिगर पैदा करूँ

आँख उठा कर जिस तरफ़ देखूँ वही आए नज़र
आँख वो पैदा करूँ और वो नज़र पैदा करूँ

फ़िक्र से ईज़ाओं की उल्टी सुना जाए हैं ग़ैर
ऐसा दिल पैदा करूँ और वो जिगर पैदा करूँ

जो तुम्हें मंज़ूर है वो कह न दो क्यूँ चुप रहो
फिर ख़ता मेरी कोई हुज्जत अगर पैदा करूँ

तेरी फ़ुर्क़त मैं गवारा कर सकूँगा किस तरह
किस का दिल लाऊँ कहाँ से ये जिगर पैदा करूँ

हाए दिल रंजिश का सदमा एक-दम उठता नहीं
ख़ुद मनाएँ वो मैं इतनी बात गर पैदा करूँ

कुछ रुका देखा जो मुझ को तो सुना कर ये कहा
ये तो अच्छी ठहरी अब लोगों का डर पैदा करूँ

मैं ही हूँ मुझ सा अगर ढूँडो जहाँ में मुब्तला
तू ही हो तुझ सा हसीं दुनिया में गर पैदा करूँ

अच्छा अच्छा दर को कर लो बंद मुझ को देख कर
सर को टकराऊँ अभी दीवार-ओ-दर पैदा करूँ

सब कुछ आता है मगर याँ अक़्ल हैराँ है मिरी
तेरे दिल में रह क्यूँ-कर फ़ित्नागर पैदा करूँ

अब तिरी झूटी लगावट में न आऊँगा कभी
मुफ़्त ईज़ा पाऊँ नाहक़ दर्द-ए-सर पैदा करूँ

कहते हैं क्या तुझ पे गुज़री थी मिरे जाने के ब'अद
क्या बताऊँ कैसे वो वक़्त-ए-सहर पैदा करूँ

क्यूँ 'निज़ाम' उस वक़्त तो तुम मान जाओगे मुझे
दोस्ती उस दुश्मन-ए-जाँ से अगर पैदा करूँ