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जब तिरा इंतिज़ार होता है | शाही शायरी
jab tera intizar hota hai

ग़ज़ल

जब तिरा इंतिज़ार होता है

सफ़ी औरंगाबादी

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जब तिरा इंतिज़ार होता है
दिल बहुत बे-क़रार होता है

दिल पे चलता है इख़्तियार उन का
जब ये बे-इख़्तियार होता है

इश्क़ होता है हुस्न का हम-सर
जब ये ख़ुद इख़्तियार होता है

वो मुझे बे-क़रार करने को
पहले ख़ुद बे-क़रार होता है

हिर्स-ए-शोहरत नहीं तो रोना क्यूँ
नाला भी इश्तिहार होता है

दोस्त कह कर न दे फ़रेब ऐ दोस्त
दोस्त पर ए'तिबार होता है

नाज़नीं हैं कब ऐसे लोग 'सफ़ी'
जिन का एहसान बार होता है