जब तिरा इंतिज़ार होता है
दिल बहुत बे-क़रार होता है
दिल पे चलता है इख़्तियार उन का
जब ये बे-इख़्तियार होता है
इश्क़ होता है हुस्न का हम-सर
जब ये ख़ुद इख़्तियार होता है
वो मुझे बे-क़रार करने को
पहले ख़ुद बे-क़रार होता है
हिर्स-ए-शोहरत नहीं तो रोना क्यूँ
नाला भी इश्तिहार होता है
दोस्त कह कर न दे फ़रेब ऐ दोस्त
दोस्त पर ए'तिबार होता है
नाज़नीं हैं कब ऐसे लोग 'सफ़ी'
जिन का एहसान बार होता है

ग़ज़ल
जब तिरा इंतिज़ार होता है
सफ़ी औरंगाबादी