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जब तिरा आसरा नहीं मिलता | शाही शायरी
jab tera aasra nahin milta

ग़ज़ल

जब तिरा आसरा नहीं मिलता

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

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जब तिरा आसरा नहीं मिलता
कोई भी रास्ता नहीं मिलता

अपना अपना नसीब है प्यारे
वर्ना दुनिया में क्या नहीं मिलता

तू ने ढूँडा नहीं तह-ए-दिल से
वर्ना किस जा ख़ुदा नहीं मिलता

लोग मिलते हैं फिर बिछड़ते हैं
कोई दर्द-आश्ना नहीं मिलता

सारी दुनिया की है ख़बर मुझ को
सिर्फ़ अपना पता नहीं मिलता

हसरतें दाग़-ओ-दर्द-ओ-रंज-ओ-अलम
दिल के दामन में क्या नहीं मिलता

बे-सहारा भी देख लो जीना
हर जगह आसरा नहीं मिलता

चेहरा चेहरा उदास लगता है
जब तिरा रुख़ खुला नहीं मिलता

‘बर्क़’ वो मेहरबान हो जिस पर
उस को दुनिया में क्या नहीं मिलता