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जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा | शाही शायरी
jab tak mere honTon pe tera nam rahega

ग़ज़ल

जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा

फ़ना बुलंदशहरी

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जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा
दिल बे-ख़बर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम रहेगा

मिट जाएगा हर नक़्श-ए-ख़याल-ए-ग़म-ए-हस्ती
लेकिन वरक़-ए-दिल पे तिरा नाम रहेगा

क्यूँ डर है गुनाहों के सबब हश्र के दिन से
हम जानते हैं उन का करम आम रहेगा

पैग़ाम तो आएँगे बहुत दैर-ओ-हरम से
लेकिन तिरी चौखट से मुझे काम रहेगा

मय-ख़ाना सलामत है अगर तेरी नज़र का
लबरेज़ म-ए-इश्क़ से हर जाम रहेगा

दामन है अगर तेरा मिरे दस्त-ए-तलब में
आग़ाज़ से बेहतर मिरा अंजाम रहेगा

जाएगी न दिल से तिरे आरिज़ की मोहब्बत
ज़ुल्फ़ों का तसव्वुर मुझे हर शाम रहेगा

आँखें ही नहीं तेरी 'फ़ना' दीद के क़ाबिल
तू जल्वा-गह-ए-यार में नाकाम रहेगा