जब तक कि दिल न लागा उन बे-मुरव्वतों से
अय्याम अपने गुज़रे क्या क्या फ़राग़तों से
बालीन पर भी ज़ालिम टुक यक नज़र न देखा
आशिक़ ने जान दी तो पर क्या ही हसरतों से
मत पूछ ये कि तुझ बिन शब किस तरह से गुज़री
काटी तो रात लेकिन किन किन मुसीबतों से
मज़मून सोज़-ए-दिल का कहते ही उड़ने लागे
हर्फ़ ओ नुक़त शरर-साँ यकसाँ किताबतों से
'बेदार' सैर-ए-गुलशन क्यूँ-कर ख़ुश आवे मुझ को
जूँ लाला दाग़ है दिल यारों की फुर्क़तों से
ग़ज़ल
जब तक कि दिल न लागा उन बे-मुरव्वतों से
मीर मोहम्मदी बेदार