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जब रुख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा | शाही शायरी
jab ruKH-e-husn se naqab uTha

ग़ज़ल

जब रुख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा

एहसान दानिश

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जब रुख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा
बन के हर ज़र्रा आफ़्ताब उठा

डूबी जाती है ज़ब्त की कश्ती
दिल में तूफ़ान-ए-इज़्तिराब उठा

मरने वाले फ़ना भी पर्दा है
उठ सके गर तो ये हिजाब उठा

शाहिद-ए-मय की ख़ल्वतों में पहुँच
पर्दा-ए-नश्शा-ए-शराब उठा

हम तो आँखों का नूर खो बैठे
उन के चेहरे से क्या नक़ाब उठा

आलम-ए-हुस्न-ए-सादगी तौबा
इश्क़ खा खा के पेच-ओ-ताब उठा

होश नक़्स-ए-ख़ुदी है ऐ 'एहसान'
ला उठा शीशा-ए-शराब उठा