जब कि सर पर वबाल आता है
पेच में बाल बाल आता है
कब पयाम-ए-विसाल आता है
ख़्वाब है जो ख़याल आता है
तेग़-ए-इरफ़ाँ से रूह बिस्मिल है
हाल पर अपने हाल आता है
शल है हर चंद पंचा-ए-मिज़्गाँ
पर कलेजा निकाल आता है
क्या अजब इश्क़ हो जो पीरी में
दूध में भी उबाल आता है
ख़ूब चलती है नाव काग़ज़ की
घर में क़ाज़ी के माल आता है
ढेर है दिल में अब कुदूरत का
मिट्टी लेने कलाल आता है
चल निकलती है कश्ती-ए-आ'माल
अरक़-ए-इंफ़िआ'ल आता है
हिज्र के दिन यूँ ही गुज़रते हैं
माह जाते हैं साल आता है
तेरे आँखों के सामने सय्याद
ज़ब्ह होने ग़ज़ाल आता है
जिस ने उस की गली में फल पाया
खा के पत्थर निहाल आता है
सर कटा कर शहीद होते हैं
उम्र खो कर कमाल आता है
न मिलेगा सिवा मुक़द्दर से
जेहल है जा मलाल आता है
बहर-ए-ज़र गुल है पल्ला-ए-मीज़ाँ
तिल के काँटे पे माल आता है
'बहर' की सुन के आरिफ़ाना ग़ज़ल
शाह-ए-दरिया को हाल आता है
ग़ज़ल
जब कि सर पर वबाल आता है
इमदाद अली बहर