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जब हवा शब को बदलती हुई पहलू आई | शाही शायरी
jab hawa shab ko badalti hui pahlu aai

ग़ज़ल

जब हवा शब को बदलती हुई पहलू आई

मुस्तफ़ा ज़ैदी

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जब हवा शब को बदलती हुई पहलू आई
मुद्दतों अपने बदन से तिरी ख़ुश्बू आई

मेरे नग़्मात की तक़दीर न पहुँचे तुझ तक
मेरी फ़रियाद की क़िस्मत कि तुझे छू आई

अपनी आँखों से लगाती हैं ज़माने के क़दम
शहर की राह-गुज़ारों में मिरी ख़ू आई

हाँ नमाज़ों का असर देख लिया पिछली रात
मैं इधर घर से गया था कि उधर तू आई

मुज़्दा ऐ दिल किसी पहलू तो क़रार आ ही गया
मंज़िल-ए-दार कटी साअत-ए-गेसू आई