जब फ़िक्रों पर बादल से मंडलाते होंगे
इंसाँ घट कर साए से रह जाते होंगे
दो दिन को गुलशन पे बहार आने को होगी
पंछी दिल में राग सदा के गाते होंगे
दुनिया तो सीधी है लेकिन दुनिया वाले
झूटी सच्ची कह के उसे बहकाते होंगे
याद आ जाता होगा कोई जब राही को
चलते चलते पाँव वहीं रुक जाते होंगे
कली कली बिरहन की चिता बन जाती होगी
काले बादल घिर कर आगे लगाते होंगे
दुख में क्या करते होंगे दौलत के पुजारी
रूप खिलौना तोड़ के मन बहलाते होंगे
ग़ज़ल
जब फ़िक्रों पर बादल से मंडलाते होंगे
कालीदास गुप्ता रज़ा