जब दुआएँ भी कुछ असर न करें
क्या करें सब्र हम अगर न करें
दास्ताँ ख़त्म हो ही जाएगी
आप क़िस्से को मुख़्तसर न करें
छोड़ता ही नहीं हमें सय्याद
वर्ना पर्वा-ए-बाल-ओ-पर न करें
क़ाबिल-ए-अफ़्व मैं नहीं न सही
न करें आप दरगुज़र न करें
उन को एहसास-ए-दर्द-ए-दिल कैसा
मर भी जाऊँ तो आँख तर न करें
उस की बेचारगी का क्या कहना
जिस की आहें भी कुछ असर न करें
ये भी तश्हीर-ए-शाएरी है 'जोश'
आप दीवान मुश्तहर न करें
ग़ज़ल
जब दुआएँ भी कुछ असर न करें
जोश मलसियानी