EN اردو
जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़ | शाही शायरी
jab dast-basta ki nahin uqda-kusha namaz

ग़ज़ल

जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़

इमदाद अली बहर

;

जब दस्त-बस्ता की नहीं उक़्दा-कुशा नमाज़
काटेगी मेरी पाँव की ज़ंजीर क्या नमाज़

बंदों का तो ये हाल है लेती नहीं सलाम
क्यूँ कर कहूँ क़ुबूल करेगा ख़ुदा नमाज़

बू-ए-रिया हर एक गुल-ए-बोरिया में है
दुनिया की घर का फ़र्श है ज़ाहिद की जा-नमाज़

रोज़ा हमारी फ़ाक़ा-कशी का नमूना है
अपनी फ़रोतनी का ही इक परतवा नमाज़

फ़रियाद कर रहा हूँ दो-वक़्ती अज़ाँ नहीं
तकलीफ़ मुझ को देती हैं सुब्ह-ओ-मसा नमाज़

मीना-ए-मय इमाम हो मामूम रिंद हों
हसरत है पाँच वक़्त की हो यूँ अदा नमाज़

सारे नुक़ूश संगी-ए-गुलहा-ए-बाग़-ए-खु़ल्द
जिस बोरिए पे मैं ने पढ़ी बे-रिया नमाज़

मस्ती में लग़्ज़िश अपनी रुकू-ओ-सुजूद है
निकले जो मय-कदे से तो होगी क़ज़ा नमाज़

जाते हैं गिरते पड़ते हुए राह-ए-शौक़ में
क्या जानें हम तरीक़ है क्या और क्या नमाज़

ला-तक़रबुस्सलात इसी अम्र पर है नहीं
पी कर मय-ए-ग़रूर न पढ़ वाइज़ा नमाज़

अल्लाह दे जो निय्यत-ए-ख़ालिस हुज़ूर-ए-क़ल्ब
फिर अर्श सज्दा-गाह है कुर्सी है जा-नमाज़

हर दम जिहाद-ए-नफ़्स में तकबीर है बुलंद
सर पर है तेग़-ए-जब्र मगर है बपा नमाज़

दामान-ए-तर की लो ख़बर ऐ ज़ाहिदान-ए-ख़ुश्क
इस जामा-ए-नजिस से नहीं है रवा नमाज़

है इज़्तिराब फ़ाक़े में उठ बैठ बहर-ए-क़ूत
ज़ाहिद कुजा ओ रोज़ा कुजा ओ कुजा नमाज़

तीर-ओ-कमाँ हैं उस के क़ियाम-ओ-रुकूअ' 'बहर'
इक दिन उड़ाएगी हदफ़-ए-मुद्दआ' नमाज़