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जब भी दिल खोल के रोए होंगे | शाही शायरी
jab bhi dil khol ke roe honge

ग़ज़ल

जब भी दिल खोल के रोए होंगे

अहमद फ़राज़

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जब भी दिल खोल के रोए होंगे
लोग आराम से सोए होंगे

बाज़ औक़ात ब-मजबूरी-ए-दिल
हम तो क्या आप भी रोए होंगे

सुब्ह तक दस्त-ए-सबा ने क्या क्या
फूल काँटों में पिरोए होंगे

वो सफ़ीने जिन्हें तूफ़ाँ न मिले
ना-ख़ुदाओं ने डुबोए होंगे

रात भर हँसते हुए तारों ने
उन के आरिज़ भी भिगोए होंगे

क्या अजब है वो मिले भी हों 'फ़राज़'
हम किसी ध्यान में खोए होंगे