जाते ही हो गर ख़्वाह-नख़वाह
फ़बिहा बेहतर बिस्मिल्लाह
यक शब देखी जिन ने वो ज़ुल्फ़
लाखों देखे रोज़-ए-सियाह
इतनी तो मत हो जल्द नसीम
हम भी चमन तक हैं हम-राह
दुश्मन रहवें बादा बग़ैर
ता है ख़िर्क़ा और कुलाह
कौंदे है दिल पर बर्क़ सी आज
पेश-ए-नज़र है किस की निगाह
व'अदा कर के रात का तुम
ख़ूब ही आए वाह जी वाह
'क़ाएम' से कोई हो है ख़फ़ा
बंदा, ख़ादिम, दौलत-ख़्वाह
ग़ज़ल
जाते ही हो गर ख़्वाह-नख़वाह
क़ाएम चाँदपुरी