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जाते ही हो गर ख़्वाह-नख़वाह | शाही शायरी
jate hi ho gar KHwah-naKHwah

ग़ज़ल

जाते ही हो गर ख़्वाह-नख़वाह

क़ाएम चाँदपुरी

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जाते ही हो गर ख़्वाह-नख़वाह
फ़बिहा बेहतर बिस्मिल्लाह

यक शब देखी जिन ने वो ज़ुल्फ़
लाखों देखे रोज़-ए-सियाह

इतनी तो मत हो जल्द नसीम
हम भी चमन तक हैं हम-राह

दुश्मन रहवें बादा बग़ैर
ता है ख़िर्क़ा और कुलाह

कौंदे है दिल पर बर्क़ सी आज
पेश-ए-नज़र है किस की निगाह

व'अदा कर के रात का तुम
ख़ूब ही आए वाह जी वाह

'क़ाएम' से कोई हो है ख़फ़ा
बंदा, ख़ादिम, दौलत-ख़्वाह