जाता है कौन आप से जल्लाद की तरफ़
खींचा इस आब-ओ-दाना ने सय्याद की तरफ़
ना-ख़ुश है आशिक़ों से बहुत आज-कल वो शोख़
बदले करम के तब्अ है बेदाद की तरफ़
मश्शाता जज़्ब-ए-दिल सा कोई दूसरा नहीं
शीरीं को खींच ले गया फ़रहाद की तरफ़
इश्क़-ए-बुताँ है ख़्वाब-ए-फ़रामोश ऐ ख़ुदा
आया है फिर ख़याल तिरी याद की तरफ़
देती नहीं नज़ाकत उसे हुक्म क़त्ल का
जाता हूँ दौड़ दौड़ के जल्लाद की तरफ़
आता है क़द्द-ए-यार चमन में मुझे जो याद
हैरत से तकने लगता हूँ शमशाद की तरफ़
ये क्या सबब है काफिर-ओ-दीं-दार सब हुए
यारब उसी बुत-ए-सितम-ईजाद की तरफ़
'आजिज़' छुड़ाए बख़्त अगर क़ैद-ए-ज़ीस्त से
आऊँ कभी न आलम-ए-ईजाद की तरफ़
ग़ज़ल
जाता है कौन आप से जल्लाद की तरफ़
पीर शेर मोहम्मद आजिज़