जानिब-ए-कूचा-ओ-बाज़ार न देखा जाए
ग़ौर से शहर का किरदार न देखा जाए
खिड़कियाँ बंद करें छुप के घरों में बैठें
क्या समाँ है पस-ए-दीवार न देखा जाए
सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं सब अख़बारों की
आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए
शहर का शहर गुनहगार तो हो सकता है
जब कहीं कोई गुनहगार न देखा जाए
दश्त से कम नहीं वीराँ कोई बस्ती 'मख़मूर'
ये हुजूम-ए-दर-ओ-दीवार न देखा जाए
ग़ज़ल
जानिब-ए-कूचा-ओ-बाज़ार न देखा जाए
मख़मूर सईदी