जाने वाले तुझे कब देख सकूँ बार-ए-दिगर
रौशनी आँख की बह जाएगी आँसू बन कर
तू हिसार-ए-दर-ओ-दीवार लिए जाए किधर
मेरा क्या है कि मैं हूँ दश्त-ब-दिल ख़ाना ब-सर
कौन जाने मिरी तन्हाई-पसंदी क्या है
बस तिरे ज़िक्र का अंदेशा तिरे नाम का डर
यूँ भी अश्कों का धुँदलका था सुझाई न दिया
किस ने लूटा दम-ए-रुख़्सत सर-ओ-सामान-ए-सफ़र
किस ने देखा है मिरा शहर-ए-ख़मोशान-ए-हयात
दिल की वादी से गुज़रना है तो आहिस्ता गुज़र
रो रहा हूँ कि तिरे साथ हँसा था बरसों
हँस रहा हूँ कि कोई देख न ले दीदा-ए-तर
ये मिरी ज़ख़्म-नसीबी ये तिरी हैरानी
मैं ने तेरे ही इशारा पे तो डाली थी सिपर
टूट जाएगा नशा देख कोई नाम न ले
आँख भर आएगी इस तरह मिरा जाम न भर
कोई गुम-गश्ता हर आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले
चूम लेता है तिरी याद का भारी पत्थर
मैं ने हर रात यही सोच के आँसू पोंछे
मुँह दिखाना भी है दुनिया को ब-हंगाम-ए-सहर
'शाज़' को सब्र अता कर के बड़ा काम किया
उस ने क्या माँगा था क्या पाया है ऐ रब-ए-हुनर
ग़ज़ल
जाने वाले तुझे कब देख सकूँ बार-ए-दिगर
शाज़ तमकनत