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जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में | शाही शायरी
jaane kisi ne kya kaha tez hawa ke shor mein

ग़ज़ल

जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में

सलीम अहमद

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जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में
मुझ से सुना नहीं गया तेज़ हवा के शोर में

मैं भी तुझे न सुन सका तू भी मुझे न सुन सका
तुझ से हुआ मुकालिमा तेज़ हवा के शोर में

कश्तियों वाले बे-ख़बर बढ़ते रहे भँवर की सम्त
और मैं चीख़ता रहा तेज़ हवा के शोर में

मेरी ज़बान-ए-आतिशीं लौ थी मिरे चराग़ की
मेरा चराग़ चुप न था तेज़ हवा के शोर में

जैसे ख़रोश-ए-बहर में शोर-ए-परिंद डूब जाए
डूब गई मिरी सदा तेज़ हवा के शोर में

नौहागरान-ए-शाम-ए-ग़म तुम ने सुना नहीं मगर
कैसा अजीब दर्द था तेज़ हवा के शोर में

मेरे मकाँ की छत पे थे ताएर-ए-शब डरे डरे
जैसे पयाम-ए-मर्ग था तेज़ हवा के शोर में

मिन्नत-ए-गोश-ए-बे-हिसाँ कौन उठाए अब 'सलीम'
नौहा-ए-ग़म मिला दिया तेज़ हवा के शोर में