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जाने किस ख़्वाब का सय्याल नशा हूँ मैं भी | शाही शायरी
jaane kis KHwab ka sayyal nasha hun main bhi

ग़ज़ल

जाने किस ख़्वाब का सय्याल नशा हूँ मैं भी

राज नारायण राज़

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जाने किस ख़्वाब का सय्याल नशा हूँ मैं भी
उजले मौसम की तरह एक फ़ज़ा हूँ मैं भी

हाँ धनक टूट के बिखरी थी मिरे बिस्तर पर
ऐ सुकूँ-लम्स तिरे साथ जिया हूँ मैं भी

राह पामाल थी छोड़ आया हूँ साथी सोते
कोरी मिट्टी का गुनहगार हुआ हूँ मैं भी

कितना सरकश था हवाओं ने सज़ा दी कैसी
काठ का मुर्ग़ हूँ अब बाद-नुमा हूँ मैं भी

कैसी बस्ती है मकीं जिस के हैं बूढ़े बच्चे
क्या मुक़द्दर है कहाँ आ के रुका हूँ मैं भी

एक बे-चेहरा सी मख़्लूक़ है चारों जानिब
आईनो देखो मुझे मस्ख़ हुआ हूँ मैं भी

हाथ शमशीर पे है ज़ेहन पस-ओ-पेश में है
'राज़' किन यारों के मा-बैन खड़ा हूँ मैं भी