जागती शब ख़ुदा-हाफ़िज़
जा चुके सब ख़ुदा-हाफ़िज़
दश्त मुझ को बुलाता है
ज़िंदगी अब ख़ुदा-हाफ़िज़
रास्ता रोकते क्यूँ हो
कह दिया जब ख़ुदा-हाफ़िज़
खा चुका दाना-ए-गंदुम
मेहरबाँ रब ख़ुदा-हाफ़िज़
आख़िरी साँस जब निकली
लिख दिया तब ख़ुदा-हाफ़िज़
अब चलो रात है 'बाबर'
शाम की छब ख़ुदा-हाफ़िज़
ग़ज़ल
जागती शब ख़ुदा-हाफ़िज़
अहमद सज्जाद बाबर