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जागती शब ख़ुदा-हाफ़िज़ | शाही शायरी
jagti shab KHuda-hafiz

ग़ज़ल

जागती शब ख़ुदा-हाफ़िज़

अहमद सज्जाद बाबर

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जागती शब ख़ुदा-हाफ़िज़
जा चुके सब ख़ुदा-हाफ़िज़

दश्त मुझ को बुलाता है
ज़िंदगी अब ख़ुदा-हाफ़िज़

रास्ता रोकते क्यूँ हो
कह दिया जब ख़ुदा-हाफ़िज़

खा चुका दाना-ए-गंदुम
मेहरबाँ रब ख़ुदा-हाफ़िज़

आख़िरी साँस जब निकली
लिख दिया तब ख़ुदा-हाफ़िज़

अब चलो रात है 'बाबर'
शाम की छब ख़ुदा-हाफ़िज़