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जा लड़ी यार से हमारी आँख | शाही शायरी
ja laDi yar se hamari aankh

ग़ज़ल

जा लड़ी यार से हमारी आँख

आग़ा अकबराबादी

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जा लड़ी यार से हमारी आँख
देखो कर बैठी फ़ौजदारी आँख

शोख़ियाँ भूल जाए आहू-ए-चीं
देख पाए अगर तुम्हारी आँख

लाख इंकार मय-कशी से करो
कहीं छुपती भी है ख़ुमारी आँख

होवेगा रंज या ख़ुशी होगी
क्यूँ फड़कने लगी हमारी आँख

जानिब-ए-दर निगाह-ए-हसरत है
किस की करती है इंतिज़ारी आँख

कर के इक़रार हो गया मुंकिर
सामने आ के किस ने मारी आँख

मुर्ग़-ए-दिल पर निगाह है उन की
ऐसी देखी नहीं शिकारी आँख

है सितम नोक-झोंक चितवन में
लड़ रही है छुरी कटारी आँख

दिल जिगर दोनों हो गए मजरूह
बन गई है छुरी कटारी आँख

कोई दम में उभारते हैं उसे
उस ने देखा कि हम ने मारी आँख

'आग़ा' साहब तुम्हारे दिलबर की
क्या रसीली है क्या है प्यारी आँख