इत्र-ए-फ़िरदौस-ए-जवाँ में ये बसाए हुए होंट
ख़ून-ए-गुल-रंग-ए-बहाराँ में नहाए हुए होंट
ख़ुद-बख़ुद आह लरज़ते हुए बोसों की तरह
मेरे होंटों की लताफ़त को जगाए हुए होंट
दस्त-ए-फ़ितरत के तराशे हुए दो-बर्ग-ए-गुलाब
दिल के टूटे हुए टुकड़ों को बनाए हुए होंट
ज़ुल्म और जब्र के अहकाम से ख़ामोश मगर
मोहर पैमान-ए-मोहब्बत की लगाए हुए होंट
ग़ज़ल
इत्र-ए-फ़िरदौस-ए-जवाँ में ये बसाए हुए होंट
अली सरदार जाफ़री