इतने इम्कान कब हुए पहले
वो पशेमान कब हुए पहले
इस में कोई नहीं है अनहोनी
पूरे अरमान कब हुए पहले
इश्क़ मा'ज़ूर है मशक़्क़त से
हम थे हलकान कब हुए पहले
जैसे मुझ को ग़मों ने लूटा है
ऐसे मेहमान कब हुए पहले
आज़माइश है ये मोहब्बत की
हादसे जान कब हुए पहले
ये भी दाव न उन का हो कोई
ऐसे नादान कब हुए पहले
दश्त आबाद तो नहीं फिर भी
इतने वीरान कब हुए पहले
हुक्म उस का है मेरी बाबत कुछ
सख़्त दरबान कब हुए पहले
ग़ज़ल
इतने इम्कान कब हुए पहले
सय्यद सग़ीर सफ़ी