EN اردو
इतना मजबूर आदमी क्यूँ है | शाही शायरी
itna majbur aadmi kyun hai

ग़ज़ल

इतना मजबूर आदमी क्यूँ है

मक़बूल नक़्श

;

इतना मजबूर आदमी क्यूँ है
और अगर है तो आगही क्यूँ है

हर नफ़स नारा-ए-ख़ुदी क्यूँ है
इतना एहसास-ए-कमतरी क्यूँ है

तीरगी इज्ज़-ए-साहिबान-ए-नज़र
रौशनी तक ही रौशनी क्यूँ है

आज ही तो किसी से बिछड़े हैं
आज की रात चाँदनी क्यूँ है

लोग क्या जाने क्या समझ बैठें
'नक़्श' से इतनी बे-रुख़ी क्यूँ है