इतना चुप-चाप तअल्लुक़ पे ज़वाल आया था
दिल ही रोया था न चेहरे पे मलाल आया था
सुब्ह-दम मुझ को न पहचान सका आईना
मैं शब-ए-ग़म की मसाफ़त से निढाल आया था
फिर टपकती रही सीने पे ये शबनम कैसी
याद आई न कभी तेरा ख़याल आया था
कहकशाँ मेरे दरीचों में उतर आई थी
मेरे साग़र में तिरा अक्स-ए-जमाल आया था
अब न वो ज़ौक़-ए-वफ़ा है न मिज़ाज-ए-ग़म है
हू-ब-हू गरचे कोई तेरी मिसाल आया था
ग़ज़ल
इतना चुप-चाप तअल्लुक़ पे ज़वाल आया था
लुत्फ़ुर्रहमान