इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं
हुस्न मजबूर-ए-इंतिज़ार नहीं
तेरी रंजिश की इंतिहा मालूम
हसरतों का मिरी शुमार नहीं
अपनी नज़रें बिखेर दे साक़ी
मय ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं
ज़ेर-ए-लब है अभी तबस्सुम-ए-दोस्त
मुंतशिर जल्वा-ए-बहार नहीं
अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं
वर्ना तुझ से तो मुझ को प्यार नहीं
चारा-ए-इंतिज़ार कौन करे
तेरी नफ़रत भी उस्तुवार नहीं
'फ़ैज़' ज़िंदा रहें वो हैं तो सही
क्या हुआ गर वफ़ा-शिआर नहीं
ग़ज़ल
इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़