इश्क़ में ला-जवाब हैं हम लोग
माहताब आफ़्ताब हैं हम लोग
गरचे अहल-ए-शराब हैं हम लोग
ये न समझो ख़राब हैं हम लोग
शाम से आ गए जो पीने पर
सुब्ह तक आफ़्ताब हैं हम लोग
हम को दावा-ए-इश्क़-बाज़ी है
मुस्तहिक़्क़-ए-अज़ाब हैं हम लोग
नाज़ करती है ख़ाना-वीरानी
ऐसे ख़ाना-ख़राब हैं हम लोग
हम नहीं जानते ख़िज़ाँ क्या है
कुश्तगान-ए-शबाब हैं हम लोग
तू हमारा जवाब है तन्हा
और तेरा जवाब हैं हम लोग
तू है दरिया-ए-हुस्न-ओ-महबूबी
शक्ल-ए-मौज-ओ-हुबाब हैं हम लोग
गो सरापा हिजाब हैं फिर भी
तेरे रुख़ की नक़ाब हैं हम लोग
ख़ूब हम जानते हैं अपनी क़द्र
तेरे ना-कामयाब हैं हम लोग
हम से ग़फ़लत न हो तो फिर क्या हो
रह-रव-ए-मुल्क-ए-ख़्वाब हैं हम लोग
जानता भी है उस को तू वाइज़
जिस के मस्त-ओ-ख़राब हैं हम लोग
हम पे नाज़िल हुआ सहीफ़ा-ए-इश्क़
साहिबान-ए-किताब हैं हम लोग
हर हक़ीक़त से जो गुज़र जाएँ
वो सदाक़त-मआब हैं हम लोग
जब मिली आँख होश खो बैठे
कितने हाज़िर-जवाब हैं हम लोग
हम से पूछो 'जिगर' की सर-मस्ती
महरम-ए-आँ-जनाब हैं हम लोग
ग़ज़ल
इश्क़ में ला-जवाब हैं हम लोग
जिगर मुरादाबादी