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इश्क़ में इज़्तिराब रहता है | शाही शायरी
ishq mein iztirab rahta hai

ग़ज़ल

इश्क़ में इज़्तिराब रहता है

मसऊद हुसैन ख़ां

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इश्क़ में इज़्तिराब रहता है
जी निहायत ख़राब रहता है

ख़्वाब सा कुछ ख़याल है लेकिन
जान पर इक अज़ाब रहता है

तिश्नगी जी की बढ़ती जाती है
सामने इक सराब रहता है

मरहमत का तिरी शुमार नहीं
दर्द भी बे-हिसाब रहता है

तेरी बातों पे कौन लाए दलील
दिल है सो ला-जवाब रहता है