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इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर | शाही शायरी
ishq ko taqlid se aazad kar

ग़ज़ल

इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर

एहसान दानिश

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इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर
दिल से गिर्या आँख से फ़रियाद कर

बाज़ आ ऐ बंदा-ए-हुस्न-ए-मजाज़
यूँ न अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर

ऐ ख़यालों के मकीं नज़रों से दूर
मेरी वीराँ ख़ल्वतें आबाद कर

नज़अ में हिचकी नहीं आई मुझे
भूलने वाले ख़ुदा-रा याद कर

हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
अपनी इक तर्ज़-ए-नज़र ईजाद कर

इशरत-ए-दुनिया है इक ख़्वाब-ए-बहार
काबा-ए-दिल दर्द से आबाद कर

अब कहाँ 'एहसान' दुनिया में वफ़ा
तौबा कर नादाँ ख़ुदा को याद कर