इश्क़ की इतनी बढ़ीं रानाइयाँ
हुस्न को आने लगीं अंगड़ाइयाँ
एक वो हैं और उन की अंजुमन
एक मैं हूँ और मिरी तन्हाइयाँ
यूँ न देखो आरिज़-ए-गुल-रंग को
आइने में पड़ रही हैं झाइयाँ
फिर उभर आई हैं चोटें इश्क़ की
फिर मोहब्बत की चलीं पुरवाइयाँ
इस तरह आती है दिल में उन की याद
दूर पर जैसे पड़ीं परछाइयाँ
इब्तिदाई मरहले वो इश्क़ के
हाए 'शंकर' वो मिरी रुस्वाइयाँ

ग़ज़ल
इश्क़ की इतनी बढ़ीं रानाइयाँ
शंकर लाल शंकर