इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़
अम्र-ए-दुश्वार का ख़ुदा-हाफ़िज़
पेच मुझ पर पड़े जो पड़ना हो
ज़ुल्फ़-ए-ख़मदार का ख़ुदा-हाफ़िज़
सर जो टकराता हूँ तो कहते हैं
मेरी दीवार का ख़ुदा-हाफ़िज़
सरफ़रोशों की चश्म-ए-बद न पड़े
उन की तलवार का ख़ुदा-हाफ़िज़
दफ़्न हम हो चुके तो कहते हैं
इस गुनहगार का ख़ुदा-हाफ़िज़
दश्त छूटा तो आबलों ने कहा
याँ के हर ख़ार का ख़ुदा-हाफ़िज़
बात करने में होंट लड़ते हैं
ऐसे तकरार का ख़ुदा-हाफ़िज़
बुलबुलें क़ैद-ए-बाग़बाँ ग़ाफ़िल
गुल-ए-ज़रदार का ख़ुदा-हाफ़िज़
गर 'सख़ी' को है इश्क़ का आज़ार
ऐसे बीमार का ख़ुदा-हाफ़िज़
ग़ज़ल
इश्क़ है यार का ख़ुदा-हाफ़िज़
सख़ी लख़नवी