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इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए | शाही शायरी
ishq-e-dahan mein guzri hai kya kuchh na puchhiye

ग़ज़ल

इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए

आग़ा हज्जू शरफ़

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इश्क़-ए-दहन में गुज़री है क्या कुछ न पूछिए
नाग़ुफ़्तनी है हाल मिरा कुछ न पूछिए

क्या दर्द-ए-इश्क़ का है मज़ा कुछ न पूछिए
कहता है दिल किसी से दवा कुछ न पूछिए

महशर के दग़दग़े का मैं अहवाल क्या कहूँ
हंगामा जो हुआ सो हुआ कुछ न पूछिए

जब पूछिए तो पूछिए क्या गुज़री इश्क़ में
हम से तो और उस के सिवा कुछ न पूछिए

क्या क्या ये सब्ज़ बाग़ दिखाती है नज़'अ में
दम दे रही है जो जो क़ज़ा कुछ न पूछिए

पूछा जो हम ने गोर-ए-ग़रीबाँ का जा के हाल
आई ये तुर्बतों से सदा कुछ न पूछिए

क़िस्मत से पाइए जो कभी उस को ख़ुश-मिज़ाज
क्या कुछ न कहिए यार से क्या कुछ न पूछिए

रगड़ी हैं एड़ियाँ तो हुई है ये मुस्तजाब
किस आजिज़ी से की है दुआ कुछ न पूछिए

छोड़ा जो मुर्दा जान के सय्याद ने मुझे
क्यूँकर उड़ा मैं हो के रिहा कुछ न पूछिए

तरसा किया मैं दौलत-ए-दीदार के लिए
क़िस्मत ने जो सुलूक किया कुछ न पूछिए

उल्फ़त का नाम ले के नज़र-बंद हो गए
पाई जो प्यार कर के सज़ा कुछ न पूछिए

क्या सरगुज़िश्त गोर-ए-ग़रीबाँ की मैं कहूँ
अहवाल-ए-बंदगान-ए-ख़ुदा कुछ न पूछिए

ख़ुशबू ने आप की जो सर-अफ़राज़ उसे किया
किस नाज़ से चली है सबा कुछ न पूछिए

पूछा 'शरफ़' के मरने का उन से जो वाक़िआ
आँखों में अश्क भर के कहा कुछ न पूछिए