इसे सौदा उसे सौदा ये दीवाना वो दीवाना
हवा क्या मौसम-ए-गुल की जुनूँ-अंगेज़ होती है
अरे कम-बख़्त इंकार और मय से मौसम-ए-गुल में
बुरी इतनी भी ज़ाहिद आदत-ए-परहेज़ होती है
छुरी से पहले मुझ को तेरे ग़म्ज़े मार डालेंगे
कब आएगी अरे जल्लाद कब से तेज़ होती है
'मुबारक' भी इसी ख़ाक-ए-अज़ीम-आबाद से उट्ठा
सलामत वो ज़मीं या-रब जो मर्दुम-ख़ेज़ होती है
ग़ज़ल
इसे सौदा उसे सौदा ये दीवाना वो दीवाना
मुबारक अज़ीमाबादी