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इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है? | शाही शायरी
ise bhi chhoDun use bhi chhoDun tumhein sabhi se hi masala hai?

ग़ज़ल

इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है?

फरीहा नक़वी

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इसे भी छोड़ूँ उसे भी छोड़ूँ तुम्हें सभी से ही मसअला है?
मिरी समझ से तो बाला-तर है ये प्यार है या मुआहिदा है

''जो तू नहीं थी तो और भी थे जो तू न होगी तो और होंगे''
किसी के दिल को जला के कहते हो मेरी जाँ ये मुहावरा है

हम आज क़ौस-ए-क़ुज़ह के मानिंद एक दूजे पे खिल रहे हैं
मुझे तो पहले से लग रहा था ये आसमानों का सिलसिला है

वो अपने अपने तमाम साथी, तमाम महबूब ले के आएँ
तो मेरे हाथों में हाथ दे दे हमें भी इज़्न-ए-मुबाहला है

अरे ओ जाओ!! यूँ सर न खाओ!! हमारा उस से मुक़ाबला क्या?
न वो ज़हीन-ओ-फ़तीन यारो न वो हसीं है न शाएरा है