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इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो | शाही शायरी
is zulf-e-jaan-guza kun sanam ki bala kaho

ग़ज़ल

इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो

आबरू शाह मुबारक

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इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो
अफ़ई कहो सियाह कहो अज़दहा कहो

क़ातिल-निगह कूँ पूछते क्या हो कि क्या कहो
ख़ंजर कहो कटार कहो नीमचा कहो

टुक वास्ते ख़ुदा के मिरा इज्ज़ जा कहो
बेकस कहो ग़रीब कहो ख़ाक-ए-पा कहो

आशिक़ का दर्द-ए-हाल छुपाना नहीं दुरुस्त
परघट कहो पुकार कहो बरमला कहो

उस तेग़-ज़न नीं दिल कूँ दिया है मिरे ख़िताब
बिस्मिल कहो शहीद कहो जाँ-फ़िदा कहो

शाह-ए-नजफ़ के नाम कूँ लूँ 'आबरू' सीं सीख
हादी कहो इमाम कहो रहनुमा कहो