इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ
एक दूजे का आसरा हो जाएँ
आओ मिल बैठ कर हँसें बोलें
नहीं मालूम कब जुदा हो जाएँ
दुख किसी को हो हम तड़प उट्ठें
इस क़दर दर्द-आश्ना हो जाएँ
ख़ुश्क धरती चटख़ रही हो जब
भरी बरसात की घटा हो जाएँ
शहर जामिद है लोग बे-आवाज़
ऐसे माहौल में सदा हो जाएँ
दुश्मनों के लिए बनें सरसर
दोस्तों के लिए सबा हो जाएँ
जो हमें देखे देख ले ख़ुद को
सर-ब-सर सतह-ए-आईना हो जाएँ
आग दिल की अगर भड़क उठ्ठे
ये धुँदलके सहर-नुमा हो जाएँ
रंग-ए-आलम बदल रहा है 'हज़ीं'
नहीं मालूम क्या से क्या हो जाएँ
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ग़ज़ल
इस तरह पैकर-ए-वफ़ा हो जाएँ
हज़ीं लुधियानवी