इस समय कोई नहीं मेरी निगहबानी पर
ये घड़ी सख़्त कड़ी है तिरे ज़िंदानी पर
बा-ख़बर कर के रह-ए-इश्क़ की मुश्किल से तुझे
फ़ैसला छोड़ दिया है तिरी आसानी पर
न हवा और न मिट्टी पे कभी हो पाया
जो भरोसा है मुझे बहते हुए पानी पर
मैं अभी पहले ख़सारे से नहीं निकला हूँ
फिर भी तय्यार है दिल दूसरी नादानी पर
किसी भी वक़्त बदल सकता है लम्हा कोई
इस क़दर ख़ुश भी न हो मेरी परेशानी पर
ख़त्म होने को हैं अश्कों के ज़ख़ीरे भी 'जमाल'
रोए कब तक कोई इस शहर की वीरानी पर
ग़ज़ल
इस समय कोई नहीं मेरी निगहबानी पर
जमाल एहसानी