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इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला | शाही शायरी
is rahguzar mein apna qadam bhi juda mila

ग़ज़ल

इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला

ज़ेहरा निगाह

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इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला
इतनी सऊबतों का हमें ये सिला मिला

इक वुसअत-ए-ख़याल कि लफ़्ज़ों में घिर गई
लहजा कभी जो हम को करम-आश्ना मिला

तारों को गर्दिशें मिलीं ज़र्रों को ताबिशें
ऐ रह-नवर्द राह-ए-जुनूँ तुझ को क्या मिला

हम से बढ़ी मसाफ़त-ए-दश्त-ए-वफ़ा कि हम
ख़ुद ही भटक गए जो कभी रास्ता मिला