इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला
इतनी सऊबतों का हमें ये सिला मिला
इक वुसअत-ए-ख़याल कि लफ़्ज़ों में घिर गई
लहजा कभी जो हम को करम-आश्ना मिला
तारों को गर्दिशें मिलीं ज़र्रों को ताबिशें
ऐ रह-नवर्द राह-ए-जुनूँ तुझ को क्या मिला
हम से बढ़ी मसाफ़त-ए-दश्त-ए-वफ़ा कि हम
ख़ुद ही भटक गए जो कभी रास्ता मिला
ग़ज़ल
इस रहगुज़र में अपना क़दम भी जुदा मिला
ज़ेहरा निगाह