इस राज़ को क्या जानें साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तिरी गहराई
जाग ऐ मिरे हम-साया ख़्वाबों के तसलसुल से
दीवार से आँगन में अब धूप उतर आई
चलते हुए बादल के साए के तआक़ुब में
ये तिश्ना-लबी मुझ को सहराओं में ले आई
ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
क्या सानेहा याद आया 'रज़्मी' की तबाही का
क्यूँ आप की नाज़ुक सी आँखों में नमी आई
ग़ज़ल
इस राज़ को क्या जानें साहिल के तमाशाई
मुज़फ़्फ़र रज़्मी