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इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी | शाही शायरी
is rah mein aate hain bayaban bhi chaman bhi

ग़ज़ल

इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी

दर्शन सिंह

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इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी
कहते हैं जिसे ज़ीस्त शबिस्ताँ भी है रन भी

क्या हो गया इंसान का वो शौक़-ए-शहादत
वीरान नज़र आते हैं अब दार-ओ-रसन भी

बुझ जाएगी मिल-जुल के अगर प्यास बुझाओ
गंगा ही के नज़दीक तो है रूद-ए-जमन भी

अब लाला-ब-दामाँ न कोई चाक-गरेबाँ
वीरान चमन ही नहीं सुनसान है बन भी

इक हम ही नहीं आबला-पा दश्त-ओ-दमन में
आते हैं नज़र ख़ाक-बसर लाला-बदन भी

ख़ाली नहीं अब दामन-ए-हसरत मिरा 'दर्शन'
हम-राह-ए-वफ़ा मुझ को मिला इश्क़-ए-वतन भी