इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी
कहते हैं जिसे ज़ीस्त शबिस्ताँ भी है रन भी
क्या हो गया इंसान का वो शौक़-ए-शहादत
वीरान नज़र आते हैं अब दार-ओ-रसन भी
बुझ जाएगी मिल-जुल के अगर प्यास बुझाओ
गंगा ही के नज़दीक तो है रूद-ए-जमन भी
अब लाला-ब-दामाँ न कोई चाक-गरेबाँ
वीरान चमन ही नहीं सुनसान है बन भी
इक हम ही नहीं आबला-पा दश्त-ओ-दमन में
आते हैं नज़र ख़ाक-बसर लाला-बदन भी
ख़ाली नहीं अब दामन-ए-हसरत मिरा 'दर्शन'
हम-राह-ए-वफ़ा मुझ को मिला इश्क़-ए-वतन भी
ग़ज़ल
इस राह में आते हैं बयाबाँ भी चमन भी
दर्शन सिंह