इस क़दर डूबा हुआ दिल दर्द की लज़्ज़त में है
तेरा आशिक़ अंजुमन ही क्यूँ न हो ख़ल्वत में है
जज़्ब कर लेना तजल्ली रूह की आदत में है
हुस्न को महफ़ूज़ रखना इश्क़ की फ़ितरत में है
महव हो जाता हूँ अक्सर मैं कि दुश्मन हूँ तिरा
दिलकशी किस दर्जा ऐ दुनिया तिरी सूरत में है
उफ़ निकल जाती है ख़तरे ही का मौक़ा क्यूँ न हो
हुस्न से बेताब हो जाना मिरी फ़ितरत में है
उस का इक अदना करिश्मा रूह वो इतना अजीब
अक़्ल इस्ति'जाब में है फ़ल्सफ़ा हैरत में है
नूर का तड़का है धीमी हो चली है चाँदनी
हिल रहा है दिल मिरा मसरूफ़ वो ज़ीनत में है
ग़ज़ल
इस क़दर डूबा हुआ दिल दर्द की लज़्ज़त में है
जोश मलीहाबादी