इस की आँखों पे वार दें आँखें
इक नज़र ही में हार दें आँखें
दिल मुझे उस ने बे-क़रार दिया
और बे-इख़्तियार दीं आँखें
पहले चेहरा छुपा लिया उस ने
बा'द में इश्तिहार दीं आँखें
दिल वहीं रह गया जहाँ हम ने
सरसरी सी गुज़ार दीं आँखें
ख़्वाब मेरे चुरा लिए उस ने
जिस को मैं ने उधार दीं आँखें
मैं ने आँखों में झाँकना चाहा
उस ने दिल में उतार दीं आँखें
मैं तो ख़ामोश ही रहा लेकिन
वक़्त-ए-रुख़्सत पुकार दीं आँखें
तू भी 'मोमिन' कमाल करता है
तू ने सूरज से चार दीं आँखें
ग़ज़ल
इस की आँखों पे वार दें आँखें
अब्दुर्रहमान मोमिन