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इस के जो जो कि फ़वाएद हैं ख़ुद देखते जाओ | शाही शायरी
is ke jo jo ki fawaed hain KHud dekhte jao

ग़ज़ल

इस के जो जो कि फ़वाएद हैं ख़ुद देखते जाओ

मीर मेहदी मजरूह

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इस के जो जो कि फ़वाएद हैं ख़ुद देखते जाओ
सच कहा है ये किसी ने कि पियो और पिलाओ

ज़ब्त सरकार में होने के लिए छोड़ न जाओ
ख़ूब ही खाओ ज़र-ओ-माल को और ख़ूब उड़ाओ

तुम में और ग़ैर में जो शब को हुई है सोहबत
ख़ुद कहे देता है वो आप की आँखों का झुकाओ

बैठने के नहीं क़ाबिल ये सरा-ए-वीराँ
याँ से तोशे के उठाने के एवज़ नाव उठाओ

मैं हूँ मख़मूर मुझे ताब कहाँ हाँ साक़ी
साफ़ हो दुर्द हो जल्दी से जो मिल जाए तो लाओ

नहीं बीमार को तकलीफ़ ज़्यादा देते
अपनी आँखों को मिरे सामने इतना न झुकाओ

दिल में आ बैठिए और सैर-ए-दो-आलम कीजे
है बहुत दूर का उस मंज़िल-ए-वीराँ से दिखाओ

मुँह से गर बात निकल जाए तो आफ़त आ जाए
जो कहीं चुपके सुने जाओ ज़बाँ को न हिलाओ

मैं कहाँ और कहाँ रात का आना पर हाँ
तेरे घर से तो बहुत ग़ैर के घर का है लगाओ

उखड़े जाते हैं क़दम देख वहाँ की रंगत
अपना इस दर पे हुआ है न कभी होगा जमाव

दिल की आबादी की अब फ़िक्र है बिल्कुल नाहक़
अब तो याँ रोज़ ही होता है सिपह-ए-ग़म का पड़ाव

बा'द इक उम्र के गर अर्ज़-ए-तमन्ना कीजे
वो बिगड़ कर यही कहते हैं कि बातें न बनाओ

गरचे ये झूट फ़साना है वले है दिलचस्प
कहते हैं अपनी कहानी मुझे तुम रोज़ सुनाओ

हूँ अगर उस के एवज़ नीम-निगह का ख़्वाहाँ
हँस के कहते हैं कि कुछ क़ीमत-ए-दिल और घटाओ

अव्वल-ए-इश्क़ है दिल कब है समझने वाला
अभी ज़ोरों पे है इस बहर पर आफ़त का चढ़ाओ

हाल भी कहते अगर होश ठिकाने होते
याँ तो हैरत है कि तुम और मुझे पूछने आओ

दम निकलने का अलम किस से सहा जाता है
हर्फ़ तुम जाने का ऐ जान ज़बाँ ही पे न लाओ

उन को तो पास-ए-मोहब्बत नहीं असलन लेकिन
निभ सके तुम से अगर हज़रत-ए-दिल और निभाओ

ज़ख्म-ए-हिज्राँ की नहीं और तो दुनिया में दवा
मुंदमिल वस्ल के मरहम से तो होता है ये घाव

कब उसे दीदा-ए-तर दावा-ए-हम-चश्मी है
आठ आठ आँसू न तुम अब्र-ए-बहारी को रुलाओ

उन के आने के तसव्वुर में यही कहता हूँ
ऐ शब-ए-व'अदा न हो सुब्ह वो करते हैं बनाव

वाँ खपत ही नहीं क्या जिंस-ए-वफ़ा ले जाएँ
उन की सरकार में इक जौर-ओ-सितम का है बनाव

अब हो 'मजरूह' मोहब्बत से बहुत घबराते
हम तो पहले ही ये कहते थे कि दिल को न लगाओ