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इस डर से इशारा न किया होंट न खोले | शाही शायरी
is Dar se ishaara na kiya honT na khole

ग़ज़ल

इस डर से इशारा न किया होंट न खोले

राम रियाज़

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इस डर से इशारा न किया होंट न खोले
देखे कि न देखे कोई बोले कि न बोले

पत्थर की तरह तुम ने मिरा सोग मनाया
दामन न कभी चाक किया बाल न खोले

मैं ने सर-ए-गिर्दाब कई बार पुकारा
साहिल से मगर लोग बड़ी देर से बोले

मैं आलम-ए-तन्हाई में निकला हूँ सफ़र पर
फिर गर्दिश-ए-अय्याम कहीं साथ न हो ले

हम कोहना रिवायात के मुजरिम हैं कि हम ने
इंसाँ कभी सोने की तराज़ू में न तोले

फिर 'राम' यहाँ चुप को बहुत देर लगेगी
जी खोल के हँस ले अभी जी खोल के रो ले