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इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते | शाही शायरी
is dar pe mujhe yar machalne nahin dete

ग़ज़ल

इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

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इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते
अरमान मिरे जी के निकलने नहीं देते

दम दम में ख़बर पहुँचे है जो आने की अपनी
है जान लबों पर वो निकलने नहीं देते

आशोब-ए-क़यामत से ज़ि-बस ख़ौफ़ है सब को
दो चार क़दम भी उन्हें चलने नहीं देते

जाता है सफा-ए-रुख़-ए-दिलदार पे जब दिल
मक़्दूर तक अपने तो फिसलने नहीं देते

आदत में करो फ़र्क़ न तुम अपनी निगह से
क्यूँ ज़हर उसे आज उगलने नहीं देते

वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी
हम बात भी ख़ल्वत से निकलने नहीं देते

ये दस्त-बसर रहने का 'आरिफ़' वो महल है
उस जा कफ़-ए-अफ़्सोस भी मलने नहीं देते