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इन दिनों वो इधर नहीं आता | शाही शायरी
in dinon wo idhar nahin aata

ग़ज़ल

इन दिनों वो इधर नहीं आता

जोशिश अज़ीमाबादी

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इन दिनों वो इधर नहीं आता
अपना जीना नज़र नहीं आता

उस की व'अदा-ख़िलाफ़ीयाँ देखो
आने कहता है बे-पर नहीं आता

घर-ब-घर तू पड़ा फिरे है तो
आह क्यूँ मेरे घर नहीं आता

क़ासिद उस बेवफ़ा से यूँ कहना
लिख तू कुछ भेज गर नहीं आता

गो कि रहता है ये जरस नालाँ
मेरे नालों से पर नहीं आता

यार रातों को तेरे कूचे में
कब ये ख़स्ता-जिगर नहीं आता

और कहते नहीं रक़ीब उसे
लब कुछ मुझ को डर नहीं आता

किस लिए 'जोशिश' इतनी नाला-कशी
कुछ असर तो नज़र नहीं आता