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इम्तिहान-ए-शौक़ में साबित-क़दम होता नहीं | शाही शायरी
imtihan-e-shauq mein sabit-qadam hota nahin

ग़ज़ल

इम्तिहान-ए-शौक़ में साबित-क़दम होता नहीं

कलीम आजिज़

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इम्तिहान-ए-शौक़ में साबित-क़दम होता नहीं
इश्क़ जब तक वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-ग़म होता नहीं

उन की ख़ातिर से कभी हम मुस्कुरा उट्ठे तो क्या
मुस्कुरा लेने से दिल का दर्द कम होता नहीं

जो सितम हम पर है उस की नौइयत कुछ और है
वर्ना किस पर आज दुनिया में सितम होता नहीं

तुम जहाँ हो बज़्म भी है शम्अ' भी परवाना भी
हम जहाँ होते हैं ये सामाँ बहम होता नहीं

रात भर होती हैं क्या क्या अंजुमन-आराइयाँ
शम्अ' का कोई शरीक-ए-सुब्ह-ए-ग़म होता नहीं

माँगता है हम से साक़ी क़तरे क़तरे का हिसाब
ग़ैर से कोई हिसाब-ए-बेश-ओ-कम होता नहीं