इक उम्र से हम तुम आश्ना हैं
हम से मह ओ अंजुम आश्ना हैं
दिल डूबता जा रहा है पैहम
लब हैं कि तबस्सुम आश्ना हैं
उन मंज़िलों का सुराग़ कम है
जिन मंज़िलों में गुम आश्ना हैं
कुछ चारा-ए-दर्द-ए-आश्नाई
किस सोच में गुम-सुम आश्ना हैं
इस दौर में तिश्ना-काम साक़ी
हम जैसे कई ख़ुम-आश्ना हैं
ग़ज़ल
इक उम्र से हम तुम आश्ना हैं
हफ़ीज़ होशियारपुरी