इक परिंदा शाख़ पर बैठा हुआ
हसरतों से आसमाँ तकता हुआ
इक सदी की दास्ताँ कहता हुआ
इक शजर दालान में सूखा हुआ
इक ज़मीं पैरों तलक सिमटी हुई
इक समुंदर दूर तक फैला हुआ
इक कहानी फिर जनम लेती हुई
इक फ़साना दफ़्न फिर होता हुआ
इक किरन अफ़्लाक से आती हुई
इक अँधेरा चाँद पर बैठा हुआ
इक ज़मीं दो बूँद को तरसी हुई
इक नगर सैलाब में डूबा हुआ
एक कश्ती ग़र्क़-ए-ख़ूँ होती हुई
इक मसीहा छोड़ कर जाता हुआ
एक चिड़िया चहचहें करती हुई
इक शिकारी ताक़ में बैठा हुआ
इक गिलहरी पेड़ पर चढ़ती हुई
इक मुसव्विर सोच में डूबा हुआ
इक डगर सू-ए-फ़लक जाती हुई
इक सितारा बाम पर उतरा हुआ
इक ग़ज़ल फिर दस्तकें देती हुई
इक तसव्वुर फिर बदन लेता हुआ

ग़ज़ल
इक परिंदा शाख़ पर बैठा हुआ
ऐन इरफ़ान