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इक नौ-बहार-ए-नाज़ को मेहमाँ करेंगे हम | शाही शायरी
ek nau-bahaar-e-naz ko mehman karenge hum

ग़ज़ल

इक नौ-बहार-ए-नाज़ को मेहमाँ करेंगे हम

मजीद लाहौरी

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इक नौ-बहार-ए-नाज़ को मेहमाँ करेंगे हम
हर दाग़-ए-दिल को रश्क-ए-गुलिस्ताँ करेंगे हम

साग़र में नूर-ए-दीदा-ए-अंजुम उंडेल कर
फिर तीरगी-ए-ग़म में चराग़ाँ करेंगे हम

उड़ जाएँगी फ़ज़ा में बहारों की धज्जियाँ
जिस वक़्त तार तार गरेबाँ करेंगे हम

कहते हैं आसमाँ पे वो ज़ुल्फ़ें बिखेर कर
झुलसी हुई ज़मीन पे एहसाँ करेंगे हम

जी भर के हम को कर ले परेशान आसमाँ
इक रोज़ आसमाँ को परेशाँ करेंगे हम

ऐ वक़्त सन कि आएगा जब भी हमारा वक़्त
तूफ़ाँ को मौज मौज को तूफ़ाँ करेंगे हम

जब तक हमारे सामने जाम-ए-शराब है
बरहम मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ करेंगे हम

वो आरज़ू कि दिल से ज़बाँ तक न आ सके
कुछ इस का तज़्किरा भी मिरी जाँ करेंगे हम

दूर ख़िज़ाँ से कोई कहे जा के ए 'मजीद'
फिर एहतिमाम-ए-जश्न-ए-बहाराँ करेंगे हम